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Lethal Role Of Foreign Political Consultant In Indian Subcontinents Countries Politics ?
Lethal Role Of Foreign Political Consultant In Indian Politics ? Why Harvard Political Consultant Mr Steve Jardings Could Not Perform For Samajwadi Party Campaigning In Uttar Pradesh,India Elections ? ऐसा क्या हुआ की हार्वर्ड के जाने माने पोलिटिकल कंसलटेंट स्टीव जॉर्डिंग्स की सलाहों ने समाजवादी पार्टी की नैया डुबो दी ? पढ़े ये लेख और जाने की क्यों विदेशी पोलिटिकल कंसलटेंट हमेशा ही देशी चुनावो में आत्मघाती सिद्ध होंगे ..
पिछले साल जून जुलाई २०१६ क़े महीने में भारतीय उपमहाद्वीप क़े एक देश क़े बड़े राजनैतिक दल को अपनी सेवाएं देने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ था ! सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा ये था की अगर उन्हें पोलिटिकल कंसलटेंट की सेवाएं लेनी है, तो क्या वो अमेरिका या फिर लंदन क़े पोलिटिकल कंसलटेंट की ले या फिर स्थानीय पोलिटिकल कंसलटेंट की ! बात करने से ऐसा लग रहा था जैसे उनके मन में भी विदेशी पोलिटिकल कंसलटेंट की तरफ काफी आकर्षण था ! फ़िलहाल मैंने उनको वाजिब तर्कों क़े साथ बताया की कोई भी बड़े से बड़ा विदेशी पोलिटिकल कंसलटेंट भारतीय उपमहाद्वीप क़े देशो क़े चुनावो का रणनीतिक प्रबंधन उतनी कुशलता से नहीं कर सकता जितना की यहाँ का कोई छोटे से छोटा स्थानीय पोलिटिकल कंसलटेंट ! काफी लम्बी वार्तालाप क़े बाद तर्कों क़े आधार पर मेरी इस बात से वो लोग संतुष्ट हो गए थे !
फिर उत्तर प्रदेश क़े चुनावो में जैसे ही समाचार पत्रों के द्वारा खबर लगी की समाजवादी पार्टी ने हार्वर्ड क़े जाने माने पोलिटिकल कंसलटेंट स्टीव जॉर्डिंग्स की सेवाएं लेने का विचार बनाया है, मेरा ध्यान सिर्फ उनके द्वारा दी जा रही सलाह की उपयोगिता पर लगा था ! और जैसे ही उनकी पहली सलाह आयी की श्री शिवपाल यादव और दूसरे नेताओ को दरकिनार करते हुए अखिलेश यादव को सारी कमान दी जाये ताकि मीडिया में जगह बनायीं जा सके, उसी वक़्त मुझे ये अहसास हो गया था की ये एक पहली और आखिरी आत्मघाती सलाह है ! हलाकि कुछ महीनो तक श्री अखिलेश यादव जी मीडिया में छाए रहे और सारे लोगो ने मीडिया पे कब्जे को लेकर उनकी इस रणनीति की काफी सराहना की और इसे एक बहुत बढ़िया दावपेच मान लिया ! पर बहुत ही कम लोगो को अदृश्य डायनामिक्स को अध्ययन करने की आदत होती है ! शुरू में भले ही सब अच्छा लग रहा था और लोगो को ये लग रहा था की बाजी समाजवादी पार्टी क़े हाथ में है, पर मेरा यह मानना था की इसके दूरगामी प्रभाव नकारातमक और बहुत ही घातक होंगे ! संभवतः इतने घातक की अगले कई चुनावो तक समाजवादी पार्टी इस नुकसान की भरपाई न कर पाए ! अंत में हुआ भी वही ! जीतने की बात तो दूर, समाजवादी पार्टी बुरी तरह से पिट गई ! पार्टी में अंदरूनी दरार पड़ गया, जिसकी भरपाई कैसे हो किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है शायद श्री अखिलेश यादव या फिर स्टीव जॉर्डिंग्स जी को भी नहीं !
बात अब मुद्दे की करते है की आखिर कैसे और किन तथ्यों क़े ऊपर स्टीव जॉर्डिंग्स की कुशलता क़े ऊपर मैंने भारतीय राजनीती के परिदृश्य में अविश्वाश किया था ? इसमें कोई दो राय नहीं की स्टीव जॉर्डिंग्स जी बहुत बड़े पोलिटिकल कंसलटेंट है, पर किन परिस्थितयो क़े लिए ? ये ठीक उसी तरह की बात है की जैसे गर्मी क़े कितने भी अच्छे कपडे हो, वो सर्दी क़े लिए एकदम अनुपयोगी होते है या फिर तलवार का काम सुई और सुई का काम तलवार नहीं कर सकता है !
देखा जाये तो भारतीय उपमहाद्वीप क़े देशो की राजनैतिक परिस्थितिया , यहाँ क़े मतदाताओं का राजनैतिक व्यवहार , यहाँ की राजनैतिक विविधता और राजनैतिक और सामाजिक सिद्धांत पश्चिमी देशो से एकदम भिन्न है और ज्यादा कठिन भी है ! पश्चिमी देशो में मात्र एक ही तरह की भाषा, एक ही तरह का सामाजिक व्यवहार होता है ! विविधता का वह नितांत आभाव होता है ! इसके ठीक उल्टा भारत और भारीतय उपमहाद्वीप क़े देशो में विविधता का भंडार है ! यहाँ विविधता का आलम ये है कि एक ही परिवार में अलग अलग पार्टी को वोट देने वाले लोग मिल जायेगे ! साफ़ है की यहाँ की विविधता को बारीकी से समझना जरुरी है ! ऐसा कोई भी पोलिटिकल कंसलटेंट, जो यहाँ क़े आधारभूत विविधताओं , जनमानस क़े रुझानों को नहीं समझता है वो भला कैसे चुनावो की रणनीति बना सकता है और यही श्री स्टीव जॉर्डिंग्स साहब क़े साथ हुआ !
इतना ही नहीं भविष्य में भी कोई दूसरा विदेशी पोलिटिकल कंसलटेंट बहुत प्रभावी सिद्ध नहीं हो सकता है ! तर्क बहुत ही साधारण है ! जो नेतागण अपनी सारी जिंदगी यहाँ क़े वोटरों क़े बीच में गुजार देते है और वो भी जनमानस क़े रुझान को समझने में गलती कर देते है, तो एक विदेशी आदमी जो कभी भारत में रहा ही नहीं, वो भला कैसे अपने काम को अंजाम दे सकता है ?
ठीक यही बात पोलिटिकल कंसल्टिंग क़े क्षेत्र में एक और जगह लगती है, कि क्या प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों क़े विद्वान एक कुशल पोलिटिकल कंसलटेंट हो सकते है ? यहाँ पर भी जवाब है की जरुरी नहीं है कि कोई टॉप करने वाला आदमी एक कुशल पोलिटिकल रणनीतिकार हो ! क्योकि राजनीती एक ऐसा विषय है जिसमे की गणित की उपयोगिता मात्र १० प्रतिशत तक ही है ! राजनीती एक मानव व्यहार से सम्बंधित विषय है और मानव व्यहार बहुत सारे सामाजिक गतिकीय सिधान्तो द्वारा प्रतिपादित होता है ! इन सिधान्तो को गणितीय सिधान्तो क़े द्वारा नापा नहीं जा सकता है !
एक कुशल राजनैतिक रणनीतिकार बनने की पहली शर्त होती है की कितने करीब से उस माहौल को आपने जिया है ! सिर्फ इतना ही काफी नहीं है क्यों की अगर ऐसा होता तो दिग्गज नेताओ से चूक नहीं होती क्योकि वो हमेशा ही राजनीती की दुनिया में रहते है फिर भी दिग्गज नेता भी चुनाव हार जाते है ! दूसरी सबसे बड़ी चीज ये है कि आप राजनैतिक, सामाजिक, और मानवीय समूहों क़े गतिकीय सिधान्तो का कितना अच्छी तरह से अवलोकन और निरीक्षण करते है ! क्यों की सारे चुनावी रणनीति इसी सिद्धांत पर आधारित होते है की अदृश्य गतिकीय सिधान्तो को कितने कुशलता से समझा जाता है और उसका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
मेरे ख्याल से अब तक यह बात स्पष्ट हो जानी चाहिए की भारतीय उपमहाद्वीप क़े देशो की राजनैतिक विविधता पश्चिमी देशो से कही ज्यादा है ! पश्चिमी देशो क़े पोलिटिकल कंसलटेंट की रणनीतिक क्षमता का विकास वहाँ क़े परिस्थितयो क़े अनुसार ही होता है ! यानि की उनकी कुशलता उतनी ही विकसित होती है जितनी की वहाँ क़े चुनावो में चुनौतियां होती है ! जबकि हमारे यहाँ की चुनौतियां पश्चिमी देशो की चुनौतियों से कही ज्यादा विविधतापूर्ण और कठिन होती है ! इन कठिन परिस्थितयो में काम करते हुए हमारे देश क़े पोलिटिकल कंसलटेंट की दक्षता भी अधिक विकसित होती है ! उनकी समझ भी इस क्षेत्र में ज्यादा विकसित होती चली जाती है ! यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हमारे यहाँ क़े पोलिटिकल कंसलटेंट अवश्य ही अपनी कुशल भूमिका यहाँ और पश्चिमी देशो क़े चुनाव प्रबंधन में निभा सकते है पर विदेशी पोलिटिकल कंसलटेंट भारतीय उपमहाद्वीप क़े देशो क़े चुनावो में कोई खास मदतगार साबित नहीं हो सकते है ! है इतना जरूर है कि भारतीय चुनाव विदेशी पोलिटिकल कंसलटेंट के लिए एक बहुत बड़ा सजीव राजनैतिक प्रयोगशाला हो सकती है जहा आ कर वो उसका अध्ययन कर के अपनी राजनैतिक रणनीतिक समझ को बढ़ा सकते है !
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